हमारा शरीर, हमारा घर

एक पुस्तक में शरीर और घर के बीच बहुत ही सुंदर समानता बतलाई गयी है , कृपया इसे अंत तक पड़े

हमारा घर


यह शरीर ही हमारे रहने का घर है।
 इस घर को स्वयं ईश्वर ने बनाया है, इसकी कारीगरी अद्भुत है, इसमें निरालापन यह है की यह घर हमारे साथ-साथ चलता फिरता है और हम इसमें से बाहर भी नही आ जा सकते। यह दुनिया के सब घरों से छोटा है, दुमंजिला है और उसके ऊपर एक गुम्बज है फिर भी उसकी सारी ऊँचाई सिर्फ चार हाथ ही हैं। इस घर में एक मजेदार
विशेषता यह भी है कि जैसे और घरों में कई आदमी रह सकते है इसमें कोई नहीं रह सकवा, सिर्फ मैं ही रह सकता हूँ। जब हम उसमें से निकल जाते हैं तो वह गिर पड़ता है । और तब लोग या तो उसे जला देते हैं या धरती में गाड़ देते है।इस घर की दो खिड़कियाँ हैं, जो सुबह धोकर साफ़ की जाती हैं। रात को किवाड़ बन्द कर लिये जाते हैं उनमें कोई चटखनी नहीं हैं।

हमारा शरीर
 घर के सामने एक दरवाजा है और दो दरवाजे अगल-बगल  सामने का दरवाजा दो किवाड़ों से (जो ऊपर-नीचे है) बन्द हो जाता है । बाहर की खबर हम अगल-बगल के दरवाजो से सुनते हैं । घर के आगे दो चौकीदार हरदम खड़े रहते हैं । इस घर में एक चक्क भी है जिसमें खाना पीसा जाता है, और एक कुआ है जिससे घर के सब हिस्सों में पानी पहुँचता है। इसके सिवा चांदी के दो छोटे-छोटे तार हैं जो घर के हर हिस्से में खबर पहुँचाते हैं।इस घर की ठठरी हड्डियों की बनी है। वह बहुत मजबूत हैं।और काफी बोझा उठा सकती है। ये हड्डियाँ दो चीजों से बनी हैं।
एक तो एक प्रकार का चूना है दूसरी एक लचीली चीज़ है। हुड्डी को अगर जला दो तो लचीली चीज़ जल जायगी,
चूना ही रह जायगा। अगर हड्डी को तेज सिरके में डालो तो सिरका चूने को खा जायगा और फिर हम हड्डी को मोड़ सकते हैं ।बहुत -सी हड्डियाँ भीतर से खोखली होती हैं अगर वे ठोस होतीं तो बहुत भारी होतीं। कहीं-कहीं भीतरी खोखली जगह में घी के समान एक मोटा गुदा भरा रहता है इनका पोषण खून से होता है। किसी-किसी हड्डी में खून को भीतर जाने की नालियाँ होती हैं, पर, हड्डियों को बहुत कम खून क्री जरूरत होती है । पूरे आदमी की हड्डियाँ अगर सुखा ली जाए तो उनका वज़न ४-५ सेर ही होता है । दोनों टांगें घर के खम्भे हैं। इनके तीन हिस्से हैं । ऊपर घुटनों तक जाँघ है। दूसरा हिस्सा टखनों तक टांग है। तीसरा हिस्सा पाँव है। सारे घर में सबसे बड़ी हड्डी जाँध में है। उसके ऊपर का हिस्सा गोल है जो कूल्हे के एक कटोरे में बैठ जाता है ।  टांग में दो लम्बी हड्डिया है जिनमें आगे की थाली पतली और पीछे वाली मोटी है। इनके सिवा एक घुटने की चूड़ी है जो छोटी-सी गोल हड्डी है । यही टांग के मुड़ने में मदद करती है। दोनों पाँवों में कुल ६० हड्डियाँ हैं, जो एक दृसरे से
जुड़ी हैं। अगर पाँव में एक ही हड्डी होती तो न वो टांग मुड़ सकती, न हम उछल-कूद सकते ।


घर के बीच का भाग एक बड़े भारी खम्भे पर उठा है जिसे हम रीढ़ की हड्डी कहते हैं। यह २४ छोटी-छोटी हड्डियों से जंजीर की तरह जुड़ी हैं और मुड़ सकती है । यह बीच में से खोखली होती है।
दोनों हाथ इस घर के पहरेदार हैं । और उसकी रखवाली करते हैं। बाँहों की हड्डियाँ लगभग टांगों ही जैसी और वे इस कारीगरी से जोड़ी गई हैं कि आसानी से मुड़ सकती हैं तथा बोझ उठा सकती हैं ।
खोपड़ी घर का गुम्मज है। उसमें घर की सबसे क़ीमती चीज दिमाग  है। दाँतों के अलावा सिर में २२ हड्डियाँ और कपाल का आकार अंडे के समान है और हड्डी के जोड़ दानेदार हैं । अज्ञानी लोग इन्हें ब्रह्मा के लिखे लेख बताते हैं। यह गुम्बद गले पर रखा है। रीढ़ की ऊपरवाली ७ हड्डियों  को गला कहते हैं।
इस घर में १८० ऐसी चूलें हैं जिनपर जुड़ी हुई हड्डियाँ आसानी से इधर-उधर घूम सक्रती हैं । साथ ही हड्डियाँ मजबूती से बाँध कर रखी गई हैं कि कोई इधर से उधर नहीं हो सकती । इन चूलों के पास एक चूल और बांध अद्भुत थैली है जिसमें चिकनाई भरी रहती है और उससे बह रात-दिन चिकनी बनी रहती है, रगड़ से घिसती नहीं ।
सिवाय दांतों के सारे घर की हड्डियाँ पतले चमड़े से ढकीहुई हैं। 
    दूसरा ढकना मांस के पट्टे हैं। ये५०० हैं। इनका रंग लाल है।उनमें चारों ओर रक्त बहता है। ये इस रीति से बने हैं जैसे बहुत-सा सूत इकट्ठा कर रखा हो । उनके अनेक रूप हैं । कुछ चपटे, कुछ लम्बे और कुछ नुकीले होते हैं। ये दो प्रकार के हैं। एक वे जो खुद ही हिलते-चलते रहते हैं;जैसे दिल और फेफड़ों में । हम सोते हैं तब भी ये चलते रहते हैं । कुछ हमारे हिलाने से हिलते हैं। देह का चलना फिरना उठना- बैठना, फिरना इन्हीं पट्टों से हुआ करता है । मेहनत करने से ये पट्टे ताक़तवर और बेकार बैठने से कमज़ोर हो जाते हैं । त्वचा कोमल और चमकीली होती है उसमें ऐसी चैतन्यता है कि मक्खी भी उसपर बैठ जाए तो हमें मालूम हो जाती हैं । इस चमड़े में दो स्तर है। ऊपर का स्तर वहुत पतला है, उसका काम नीचे के स्तर की रक्षा करना है। इसीमें जलने से फफोला उठता है ।यह हमेशा नई बनती जाती है और ऊपर से घिसती जाती है। मेहनत करने से वह मोटी बन जाती है । इसीसे नाखून भी बनते हैं। इसी के नीचे मोटी कोमल चमड़ी है । इसीमें छूने की ताकत है । पसीने की थैलियाँ इसीमें हैं । झिल्ली और चमड़े के बीच में वह जगह है जहाँ देह का रंग रहता है । चमड़े में लाखों छेद हैं जिनका काम पसीने के साथ मैल और जहर को शरीर से बाहर निकालना । ये छेद इतने छोटे-छोटे हैं कि चमड़े पर १ रुपया रखा जाय तो उसके नीचे ३ हज़ार छेद आ जाते हैं। जो आदमी त्वचा को मैला रखते हैं उनके ये छेद रुक जाते हैं और वह बीमार हो जाता है। चमड़ी के ऊपर हथेली और तलुओं को छोड़कर छोटे-छोटे बाल होते हैं । सिर पर और पुरुषों की डाढ़ी मूछों पर
ज्यादा हो जाते हैं। इनकी जड़ें चमड़ी में घुसी होती हैं और लहु की नालियों से वे पाले जाते हैं।
इस देहरूप घर में छाती और पेट  की कोठरियों में बहुत-सा सामान भरा हुआ है यह  सामान बड़े काम का है। इन्हींसे घर का सारा कारोबार चलता है।
इनमें २ फेफड़े, १ दिल, श्वास की नाली, खाने की नाली ।
जिगर, तिल्ली, गुर्दे, मसाने, गर्भाशय, छोटी आंत, वढ़ी आंत आदि खास हैं। 
दाँत हमारे घर की चक्की हैं। ये ३२ हैं। छोटे वचों के दाँत नहीं होते क्योंकि उनकी उनको जरूरत नहीं रहती ।  बच्चे जैसे जैसे बड़े होते जाते हैं, दाँत निकलते जाते हैं। पहले आगे के निकलते हैं फिर पीछे के । परन्तु बच्चों का जबड़ा छोटा होता है। जब वह बड़ा हो जाता है तथा यह छोटी चक्क़ी काम नहीं देती । सो ये दूध के दाँत गिर जाते हैं और नये दाँत निकलते हैं जो जीवन-भर काम देते हैं । वच्चों के दाँत बीस होते हैं। बड़ों के ३२ होते हैं जो २० वर्ष की आयू में पूरे हो जाते हैं। दाँतों को बचपन ही से साफ रखने की आदत जिनकी नहीं होती, वे जल्द ही दाँतों को खो देते हैं और तकलीफ़ पाते हैं।
इस घर का तार  मस्तिष्क में है। वह खोपड़ी में रखा है। इसकी शकल अखरोट के गूदे के समान है । रीढ़ की हड्डी में होकर इस में दो तार जुड़े हुए हैं। एक संवाद को  मस्तिष्क तक पहुँचाता है, दूसरा मस्तिष्क से संवाद को ले जाता है ।
इन तारों के जाल सारे शरीर में फैले हुए हैं अगर कहीं सुई चुभोई जाय तो किसी-न-किसी तार में जरूर चुभ जायगी। सोचने-विचारने की शक्ति इसीमें है। इस में खराबी आने से आदमी पागल हो जाता है। अगर किसी इन्द्रीय क़ा कोई तार कट जाता है तो उसमें छूने की शक्ति-नहीं रहती।
 हमारी दोनों आँखें इस घर की खिड़कियाँ हैं, ये बड़ी बारीकी से बनी हैं और हर एक चीज़ इन्हीं के द्वारा हम देख लेते हैं। सन्देश पाने के द्वार दो हैं, जो कान कहलाते हैं। इनसे शब्दों को हम पहचानते हैं । कान में एक बारीक झिल्ली का पर्दा है जिसमें शब्द टकराते है तो हमें उसका ज्ञान हो जाता है। कान में तिनका डालने से यह परदा फट जाता है और हम बहरे हो जाते हैं।
घर का बढ़ा दरवाजा मुँह है। इसीसे भोजन भीतर आता है, यह दरवाजा बन्द रहे तो शरीर गीर जाएगा । इसके भीतर स्वाद को परखनेवाली जीभ हैं जब खाना दाँतों की चक्की में पीसकर मुँह की लार से तर किया जाता है तो जीभ के सहारे गीला होकर गले से उतरकर भीतर जाता हैं। अच्छे भोजन की जाँच तीन चौकीदार करते हैं पहले आँख देख लेती हैं, फिर नाक सुँघ लेता है, और तब जीभ परख लेती है,
तब खाना हम पसन्द करते हैं।

इस तरह यह कारीगरी का घर है, जिसका कोई मोल-तोल नहीं हो सकता है।

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