हमारा शरीर, हमारा घर
एक पुस्तक में शरीर और घर के बीच बहुत ही सुंदर समानता बतलाई गयी है , कृपया इसे अंत तक पड़े हमारा घर यह शरीर ही हमारे रहने का घर है। इस घर को स्वयं ईश्वर ने बनाया है, इसकी कारीगरी अद्भुत है, इसमें निरालापन यह है की यह घर हमारे साथ-साथ चलता फिरता है और हम इसमें से बाहर भी नही आ जा सकते। यह दुनिया के सब घरों से छोटा है, दुमंजिला है और उसके ऊपर एक गुम्बज है फिर भी उसकी सारी ऊँचाई सिर्फ चार हाथ ही हैं। इस घर में एक मजेदार विशेषता यह भी है कि जैसे और घरों में कई आदमी रह सकते है इसमें कोई नहीं रह सकवा, सिर्फ मैं ही रह सकता हूँ। जब हम उसमें से निकल जाते हैं तो वह गिर पड़ता है । और तब लोग या तो उसे जला देते हैं या धरती में गाड़ देते है।इस घर की दो खिड़कियाँ हैं, जो सुबह धोकर साफ़ की जाती हैं। रात को किवाड़ बन्द कर लिये जाते हैं उनमें कोई चटखनी नहीं हैं। हमारा शरीर घर के सामने एक दरवाजा है और दो दरवाजे अगल-बगल सामने का दरवाजा दो किवाड़ों से (जो ऊपर-नीचे है) बन्द हो जाता है । बाहर की खबर हम अगल-बगल के दरवाजो से सुनते हैं । घर के आगे दो चौकीदार हरदम खड़े रहते हैं । इस घर में एक चक्क भी है जिसमें
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